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Thursday, September 22, 2011

ये हुसैन नहीं, हारान हैं, इसलिए कोई बात नहीं!


 दुर्गा पूजा आ रही है. देश और देवी का अपने यहां अन्योन्याश्रित सम्बंध है. देवी पर हमारी आस्था बहुत गहरी है. हमारी आस्था पर आक्रमण करनेवाले गद्दार और नालायकों को उनकी सजा देने में हम माहिर हैं. इतने कि चाहें तो इसके लिए कंसल्टेंसी खोली जा सकती है. प्रशिक्षण दिया जा सकता है. कंसल्टेंसी की एक्सपर्ट राय अथवा प्रशिक्षण देने के लिए छम्मकछल्लो से सम्पर्क करें.
देवी के दिन हैं तो देवी की मूर्ति बनेगी ही, चाहे वह सरस्वती पूजा हो या काली पूजा या दुर्गा पूजा. हर पूजा के पहले प्राण प्रतिष्ठा भी होगी. बिन प्राण प्रतिष्ठा के मूर्ति बस केवल मूर्ति मानी जाती है.
छम्मकछल्लो दो दिन पहले एक अखबार में देख रही थी दुर्गा पूजा के लिए बनाई जा रही प्रतिमाओं की तस्वीर. आप भी देख लीजिए. आखिर, अपनी ही देवी है और बनानेवाले भी अपने ही हैं. कोई एम एफ हुसैन नहीं कि उनकी लक्ष्मी-सरस्वती की पेंटिंग से हमारी हिंदू भावना तार- तार हो जाए और हम उन्हें ऐसे दर-ब-दर कर दें कि मरने के बाद उन्हें अपने वतन में दो गज ज़मीन भी मुहय्या न कराएं. यह कोई फैशन डिजाइनर लीसा ब्ल्यू नहीं, जिसके स्विम सूट पर लगी देवी लक्ष्मी की तस्वीर पर ललकार-ललकार कर लोगों के मन में आग लगा दें. यह तो अपने कोई राखाल दा, हारान दा, मोहन भाई, गिरिराज चाचा, रामसुख भैया हैं. ये देवियों की मूर्तियां नग्न बनाएं या कपडे के साथ, कोई बात नहीं. ये अपने लोग हैं, इसलिए इनकी भावना पर संदेह आपको नास्तिक बना देगा. इन पर न तो कुदीठ डालिये, न ही मन में कोई दुर्भावना लाइए. बिन प्राण प्रतिष्ठा के राखाल दा, हारान दा, मोहन भाई, गिरिराज चाचा, रामसुख भैया की मूर्ति बस केवल मूर्ति है, बिन प्राण प्रतिष्ठा के हुसैन की पेंटिंग या लीसा ब्ल्यू की तस्वीर प्रतिष्ठा- प्रश्न बन जाते हैं. वे सब तो प्रश्न कर सकते हैं, छम्मकछल्लो नहीं. धर्म का मामला है, आस्था का प्रश्न है. देवी की सत्ता स्थापित करने में हम देवताओं की महानता है. आइये, इस महानता पर छम्मकछल्लो के साथ-साथ आप भी वारी-वारी जाएं-
            “या देवी सर्वभूतेषु, नग्नरूपेण संस्थिता
            नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमो नम:.”

         

3 comments:

शोभा said...

aapse bilkul sahmat. darm etna najuk ho gaya hai ki uska apman kisi bhi bat par ho jata hai

Vibha Rani said...

शोभा जी, हम आजकल धर्म के अपमान से नहीं, इसे करनेवालों के तथाकथित धर्म के नाम पर उत्तेजित होते हैं. हम अपने ही देवी-देवताओं की कही बातों को नहीं मानते. हमें कोई कुछ नहीं कहता. यही दूसरे धर्म के लोग करते/कहते है6 तो हमारा तह्थाकथित हिंदू रक्त उबलने लगता है. इस ढकोसले को क्या कहा जाए?

राजन said...

तो इसमें ढकोसले वाली क्या बात है.अपने परिवार के किसी सदस्य को आप गलती करने पर खूब डाँट सकती है.लेकिन उन्हें यदि मैं कुछ कहूँ तो आपको भी गुस्सा आएगा.वैसे हिंसा का रास्ता तो गलत है.